ईश वन्दना
सुबह आठ बजे जब उठ कर बालकनी पर बाहर आया तो पाया कि पड़ोस के मकान में श्रीवास्तव जी के यहाँ भजन कीर्तन प्रारम्भ था | आज काफी दिनों बाद कॉलोनी में ऐसा माहौल देखने को मिला था | इतनी सुबह कॉलोनी की ज़ारी बुजुर्ग महिलायें जमा थी श्रीवास्तव जी के बारामदे में | भक्तिमय वातावरण में प्रातःकाल पंक्षियों का कलरव और भी सुहाना लग रहा था | बाहर माइक पर कॉलोनी की सारी औरतों का समवेत स्वर गूँज रहा था और थोड़ी आवाज़ मेरे कमरे तक पहुँच रही थी। नटखट श्याम मेरी चुनरी चुराये ... | मैं वापस अपने कमरे में आ गया और बिस्तर समेट कर अन्य दैनिक गतिविधियों में लग गया |
करीब दस बजे इस पूरे भक्तिमय वातावरण में विघ्न तब पड़ा जब एक फेरी वाले ने ठीक श्रीवास्तव जी के घर के ठीक सामने जोर-जोर से आवाज लगाना शुरू कर दिया - सूती पेटीकोट मात्र १०० रुपये में | दो तीन आवाज में जब कोई महिला बाहर नहीं निकली तब उसने और जोर से नया ऑफर सुनाया - सूती पेटीकोट २०० रुपये में तीन |
इस ऑफर में कम से कम इतनी शक्ति तो थी ही कि भजन कीर्तन में लिप्त लगभग सारी महिलाओं को ये बात सुनाई दे गयी | श्रीमती विमला जी ने श्रीमती गुप्ता जी को कोहनी से इशारा किया और पलक झपकते ही दोनों बाहर फेरी वाले के सामने प्रकट हो गयीं | इन दो का निकलना था कि एक-एक करके बाकी सभी महिलायें भी बाहर आने लगी | फेरीवाले को सुबह सुबह इतने सारे ग्राहकों की उम्मीद शायद ही रही हो | श्रीमती गुप्ता जी ने, जो कि सबसे पहले फेरीवाले के पास आयी थी, कहा - कपडा इतना अच्छा नहीं है कि ३ पीस के २०० रुपये दिए जाएँ ; २०० के चार लगाओ तो कुछ सोचें | फेरीवाले ने थोड़ी ना - नुकुर की फिर तैयार हो गया | उसका राजी होना था कि सारी महिलायें बहार की ओर कूच कर गयीं और सारी की सारी भक्ति उन २०० के चार मिलने वाले सूती पेटीकोट पर आ गयी | मिसेज श्रीवास्तव जी को भी तो २०० के चार पेटीकोट लेने थे सो उन्होंने भी जल्दी जल्दी कीर्तन पाठ समाप्त किया और हवन वेदी को अग्नि दे बाहर आ गयीं |
अब पहले पेटीकोट लिया गया फिर हवन और भजन का कार्यक्रम दोबारा आरम्भ हुआ |
©नितिन चौरसिया
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