Saturday 27 July 2019

चन्द अश'आर


तू कहता है पत्थर का हूँ 
आज़मा कर तो देख,
मार मुझको; 
फिर पानी में बहा कर तो देख,

तेरा हिज़्र मुझको 
तार तार कर गया है,
मिल मुझे; 
फिर मुझको बेक़रार कर के तो देख,

तुझको यक़ीन हो जायेगा 
मोम है मेरी मिट्टी,
तू अपने प्यार की आँच में 
जला कर तो देख ।

©नितिन चौरसिया


(प्रयुक्त छायाचित्र अमृतसर यात्रा के दौरान मित्रवर विनय के सौजन्य से ।)

Wednesday 17 July 2019

तुमने...



तुमने 
तोड़ दिए सारे बंधन
भुला दिए सारे रिश्ते
और वादे
जो शायद
उम्र के किसी नाज़ुक पड़ाव पर
किये थे
एक अजनबी से
जान-पहचान हो जाने के बाद !

तुमने
छोड़ दिया वो आँगन
बेगाना कर दिया वो घर
और उस तक जाने वाली गलियां
जहाँ शायद
उम्र के उसी नाज़ुक पड़ाव पर
संजोये थे
प्रीत के सपने
अपनी हथेलियों को
उस अजनबी के हाथों में देते हुए !

(छायाचित्र : खजुराहो विश्व धरोहर से स्वयं के द्वारा ) 
बाद उसके
तुमने
जरूरी नहीं समझा
कभी पलटकर देखना
शायद
गुजरते वक़्त के साथ
संजीदा होने का दिखावा करते – करते
एक नाइ राह खोज ली !

तो अब क्या
बीते लम्हों के ज़ख्मों पर
मरहम लग पायेगा ?
क्या लौट सकेगा गुज़रा वक़्त ?
क्या अब मुनासिब होगा
यूँ लौट आना तुम्हारा
अपनी तमाम जिम्मेदारियों को छोड़ !

नहीं !
तुम्हारे बाद से ठहरी हुयी जिन्दगी में
अब तुम्हारे हाथों के फेंके पत्थर से
लहरें नहीं उठेंगी
चाहो तो ये मान लो
कि उम्र के उस नाज़ुक पड़ाव में
किये गए हर वादे
और संजोये गए हर सपने
अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं ||


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