शीर्षक : कवि तुम वो लिखना !
जब अनुनय - विनय - चीत्कार सुने न जाते हों ,
जब रह रह कर असहायों की लाशें आती हों ,
जब देश - राज्य में अशान्ति - सी छायी हो,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
जब चहुँओर वीभत्स नज़ारा दिखता हो ,
जब उन्नति का कोई मार्ग नज़र न आता हो ,
जब जुगनू भी अन्धकार में खो - सा जाए ,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
जब भाई से भाई का दुश्मनी नाता हो ,
जब अग्रज - अनुज का अंतर समझ न आता हो ,
जब कलह महासमर - सी तीखी हो जाए ,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
जब मन अंतर्द्वंदो में उलझा जाता हो ,
जब अनुचित - उचित कहीं न देखा जाता हो ,
जब चिन्गारी इक विभीषिका - सी हो जाए ,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
जब क्लेशों के मेघ उमड़ते जाते हों ,
जब शर - सम - शब्द नुकीले होते जाते हों ,
जब कलम बगावत करने पर आ जाए ,
तब अपने अंतस की सुनना; जो कहे -
कवि तुम वो लिखना !
No comments:
Post a Comment