Saturday 30 December 2017

...ठीक नहीं

.....theek nahi/ ...ठीक नहीं

ये कैसी कविता करते हो
या करते हो तुकबन्दी
जब पूरी लिख जाती है कविता
ढूँढा करते हो पहली पंक्ति !!
yeh kaisi kavita karte ho :-/
ya karte ho tum tukbandi...? :-p
jab poori likh jaati hai kavita
dhoondha karte ho pahli pankti !! :-p

ऐसे लिखना लिखते जाना
फेसबुक पर कमेंट्स जुटाना
देखो है ये ठीक नहीं !!
aese likhna likhte jaana,
Facebook par Comments jutaana
dekho hai yeh theek nahin...:-)

दुरुस्त रखो सेहत अपनी
और अपनी कविताओं की
दो पल की मस्ती की ख़ातिर
सिल्क बनाना ठीक नहीं !!
durust rakho sehat apni
aur apni kavitaaon ki
do pal ki masti ki khaatir
"Silk" banana theek nahi . :-D
(छायाचित्र: वर्डप्रेस से साभार

समझाते-समझाते देखो
एक साल फिर बीत गया
पर अब तक लिखने का...
तुम्हारा तरीका ठीक नहीं !!
samjhaate-samjhaate dekho
ek saal phir beet gaya
par ab tak likhne ka...
tumhara tareeka theek nahin..!! :-)

ऐसा करके बोलो भैया
कितने दिन टिक पाओगे?
किसी गली के कवि के सम्मुख
भी कैसे तुम टिक पाओगे?
aesa karke bolo bhaiyya
kitne din tik paaoge ?
kisi gali k kavi k sammukh
bhi kaise tun tik paaoge ?

सोंचो अब कुछ नए तरीके
और गढ़ो तुम नए विषय
प्रेम-द्वेष के भाव को छोड़ो
देश-समाज को भी दो समय !!
sonchho ab kuchh naye tareeke...
aur soncho tum naye vishay :-O
prem-dwesh k bhaav ko chhodo
desh-samaaj ko bhi do samay .

कविता करना पंक्ति जोड़ना
सुदृढ़ रचना कर लेना
सच्चे कवि को और चाहिए
विषय वस्तु का घोल प्रबल !!
kavita karna; pankti jodna;
sudridh rachana kar lena :-(
sacche kavi ko aur chahiye
vishay vastu ka ghol prabal. :-p

आमंत्रित करके स्वयं को ही
पथ पर बढ़ जाना ठीक नहीं
और पुरानी लीकों से भी
रोज गुजरना ठीक नहीं !!
aamantrit kar apne ko hi
path par badh jaana theek nahin
aur puraani leeko se bhi
aana jaana theek nahin :-p

उच्च सदन से चौपालों तक
बहस अकेले चलती है
और
हर मसले का किसी तरह से
हल भी पाना ठीक नहीं !!
Uchcha Sadan se Chaupaalo tak
bahas akele chalti hai
aur
har masle ka kisi tarah se...
hal bhi paana theek nahin...:-)

Niks-d
22:16 hr
30/12/2011


Friday 29 December 2017

३० में सन्यास

शीर्षक - ३० में सन्यास

आज का पूरा वयस्क समुदाय एक प्रकार की बीमारी या यूँ कहें महामारी से ग्रस्त है | ये बीमारी है कुछ नया, कुछ अलग, कुछ हटकर करने की | और इस रोग को बढ़ावा देने का काम करती हैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स | कहने को तो ये नेटवर्किंग साइट्स हैं पर इनपर होने वाली एक - एक पोस्ट उन किशोर - किशोरियों को चिढ़ाता है जिनकी जिंदगी एक सीधी रेखा में चल रही होती है | किशोरियाँ जहाँ अपने वयपन का प्रदर्शन करते हुए लाइक्स, लव्स और वॉवज़ की गिनती देखकर आपस में प्रतियोगिता करती हैं वहीं किशोर भी फिल्मी डायलॉग के साथ भिन्न - भिन्न  पोज़ में नज़र जाते हैं | इनमे कइयों को अपनी गरल सखी (गर्लफ्रेंड) मिल चुकी होती है और वो चेक-इन और कूल कपल वाले पोज़ में भी कर बाकी दोस्तों को अपनी खुशहाल जिंदगी दिखा उनके दिल में धधकती आग में घी डालने का काम करते रहते हैं

इन सब के बीच हालत बेहाल होती है उन मासूमो की जो हर दूसरी लड़की में अपनी बहन खोज लेते हैं और अगर उनसे चूक हो भी गयी तो वो लड़की उनको भाई या अंकल कहकर सारी कहानी का आगाज़ होने से पहले ही सत्यानाश कर देती है | इन्ही विपदाओं के शिकार कुछ युवको ने तय किया कि अब हिमालय पर अपनी विश्रामस्थली बनायीं जाए और वहां के वातावरण में शान्तिपूर्ण जीवन यापन किया जाए | कुछ ने तर्क दिए कि वहां ज्ञान का अपार भण्डार है; कई ऋषि मुनियों ने जाप तप करके अपना जीवन धन्य किया है यहाँ; तो कइयों ने इंद्र के सिंघासन तक को हिला डालने वाली तपस्या की है | 'हो सकता है हमारा भी उद्धार हो जाए' - ऐसी कामना के साथ उन्होंने अपना बैकपैक तैयार कर लिया | जरूरी सामान अपने साथ रखने की चेकलिस्ट बनायीं गयी और उसमें सबसे पहले चार्जर फिर पॉवरबैंक फिर मोबाइल फिर क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड उसके पश्चात कपड़ों को स्थान दिया गया |

(फोटो: गूगल से साभार)

परन्तु उनकी हिमालय पर सन्यास को जाने की उम्मीद पर पानी तो तब पड़ा जब ज्ञात हुआ कि हिमालय अब सन्यास स्थली ही नहीं रहा, तपोभूमि नहीं रही, निर्वाण का मार्ग नहीं रहा टूरिस्ट स्पॉट बन गया है ट्रैकिंग के लिए दूर दूर से टूरिस्ट और कपल्स आते हैं | हिमालय पर ज्ञान की प्राप्ति जरूर हो सकती है पर वो भी तब जब एक सन्यासी बनने की चेष्ठा की जाए और बर्फीले मौसम में हड्डियां ठिठुरन से कराह उठें पर ज्ञान इतना ही मिलेगा कि ठण्ड से बचने के उपाय करके ही आयें जाने कितने मुनियों की तपस्या को भंग करने का श्रेय प्राप्त करने वाली अप्सराएँ भी अब हिमालय के वातावरण से दूर तरायी क्षेत्र के मैदानों में गयी हैं उनको भी कूल डूड चाहिए, सन्यासी नहीं अब ३० की उम्र को तो वानप्रस्थ कहा जा सकता है सन्यास परन्तु लड़को की स्थिति इससे भी गयी गुजरी सी हो जाती है पीड़ा सुनने वाले और मजे लेने वाले आसपास कम नहीं होंगे पर अगर पीड़ा का वर्णन ज्यादा देर तक चले तो लोग 'टेढ़ा' समझ लेते हैं

वैसे भी आज के युग में कौन सा सीधा युवक ३० में सन्यास की बात सोंचेगा ? ३० की उम्र में सन्यास की बात करने वालों से अगर ये पूछ लिया जाए कि कितने आश्रम बताये गए हैं शास्त्रों में तो उनके जवाब में शायद 'दो' ही सुनने को मिले - ब्रह्मचर्य और सन्यास | हालाँकि उन्होंने पुरजोर कोशिश की रही होगी गृहस्थ होने की पर आजकल कौन ब्याहता है बेरोजगारों को अपनी लड़की और कौन - सी लड़की तैयार हो जाती है शादी करने को ? वो भी उससे जो उसको साल में एक बार भी शॉपिंग को ले जा सकेखैर, इन सब बातों में क्या रखा है ! अब जब हिमालय की कन्दराओं की तरफ डग भरने की ठान ही ली है और बैग भी पैक हो चुका है तो कूच करने में देरी नहीं करनी चाहिये | इस सफर का लुफ्त ही मिले | कुछ नहीं से तो काना बेहतर होता है | अनिच्छावश ज्ञान और वैराग्य की खोज को निकलें मगर निकलें तो सही | ठहरने का मन नहीं किया तो हम भी वहाँ  टूरिस्ट बन जाएँगे, ट्रैकिंग करेंगे और फिर वापस जायेंगे इसी शहर, इन्ही गलियों में, पहले की सी जिंदगी जीने |

इतना सबकुछ प्लान किया ही था कि एक के घर से फ़ोन आया | पिताजी का | सब शान्त हो गए | शान्ति भी ऐसी  कि सांप सूंघ गया हो सबको | उसके पिताजी वापस बुला रहे थे उसको | बोल रहे थे यही जा कुछ काम धन्धा देख और कितनी जिंदगी इन्तज़ार  करेगा | जी - जान से अपना बिज़नेस शुरू कर दे बस | वह ख़ुशी से ऐसे उछला जैसे उसको तो अमेरिका की ट्रिप ऑफर हुयी हो | उसने अपना बैग उठाया और निकल लिया |

बचे किशोरों को भी आभास हो गया था कि ३० में सन्यास असंभव सा है और घरवालों को अपने पौत्र/ पौत्री को गोद में लेकर खिलाने की लालसा बढ़ती ही जा रही है यथा उनका विवाह भी अवश्यम्भावी है | उनको अतिरेक ज्ञान नहीं चाहिए | वैराग्य भी नहीं चाहिए | अपने बूढ़े माँ-बाप के इस एक सपने को तो पूरा ही कर सकते हैं | थोड़ी ही देर में सबने एक बार फिर सन्यास के विचार को त्याग कर, रोनी सी सूरत बनाई और बैग उठाकर अपने दफ्तर की ओर बढ़ चले |



© नितिन चौरसिया

(EKalpana में प्रकाशित व्यंग)

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