कुहासा
पूरब की लाली गायब है,
कलरव करते पंक्षी का स्वर,
क्यों देर सवेरे आता है?
क्यों नहीं मिटा देती रजनी,
है अन्धकार-सा चहुँ ओर,
पर वक़्त कहाँ पर ठहरा है?
क्या तिमिर निशा का द्योतक है,
जिंदगी में बहारों भरे दिन रोज - रोज नहीं आते | पर जब आते हैं या आकर चले जाते हैं तो दे जाते हैं बहुत सारे किस्से, कविताएँ, अनुभव और यादें | मनुष्य यादों को सहेजता है | कभी बस याद करने के लिए | तो कभी सीखने के लिए | तो कभी उन पलों में दोबारा गुम हो जाने के लिए | और कभी - कभी सुकून के लिए | ये ब्लॉग भी इन्ही अनुभवों और यादों को लिपिबद्ध किये जाने की एक कोशिश है |
नज़्म : उसके एक दीवाने हम भी हैं ~ इक दीवानी लड़की है जो खुद में खोई रहती है उसकी इस मासूम अदा के एक दीवाने हम भी हैं उस दीवानी लड़की क...
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