Wednesday 6 December 2017

कुहासा

कुहासा

पूरब की लाली गायब है,

छाया क्यों घना कुहासा है?

कलरव करते पंक्षी का स्वर,

क्यों देर सवेरे आता है?

क्यों नहीं मिटा देती रजनी,

अपने पीछे की परछाई?

क्यों रोज दुपहरी मेरा हिय,

चाहे सूरज की तरुणाई?

है अन्धकार-सा चहुँ ओर,

पर वक़्त कहाँ पर ठहरा है?

क्या तिमिर निशा का द्योतक है,

या आज तिमिर का पहरा है? 



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