देखो!
चाँद फिर छुप गया । घने काले बादलों के बीच । कुल एक घंटे होने को आ गए और बस २
बार ही नज़रें मिलायी है अब तक हमसे । अब तक लजाता है ? कुछ चीजें कभी
नहीं बदलती । तुम भी तो आँखों में आँखे डालकर बात करने पर लजा जाती हो | इसमें
मेरी निगाहों की कोई खता नहीं | और मेरी निगाहें देखती तो उतना ही हैं न जितना तुम
चाहती हो | तुम्हारे होने का एहसास चाँद ही तो लाता है मुझ तक । अपनी शीतलता से ।
आहिस्ता - आहिस्ता । पूर्णमासी के दिन मिला था मुझसे चाँद । खुलकर । कि न चाहते
हुए भी नज़र ही न हट रही थी । पलकों ने झपकने से इंकार कर रखा था । धड़कने मद्धम थी
पर दिल खिला जा रहा था । कभी - कभी न, ये दूरियाँ बेहद खलती हैं | दिल तड़पकर रह जाता है | बस |
सच कहूँ तो पूरे साल मुझको बस इसी दिन का इम्तज़ार रहा करता है । चाँद बेहद करीब हुआ करता है । और हर पूर्णमासी से ज्यादा बड़ा भी दीखता है । मैंने तो पहले ही बताया है कि चाँद में मुझे सिर्फ सफ़ेद रोशनी ही नहीं दिखती वरन कोई महबूबा दिखती है । बेशक तुम । और कौन ?
वक़्त भी कितना सितमगर होता है | जब दो शख्स करीब होते हैं तो दूर जाने के बहाने, सैकड़ों बहाने खोज लाता है और जब दो दिल करीब आ रहे होते हैं तो जाने कितने रोड़े दिखाता है राह के | इतनी मुश्किलें तो पगबाधा दौड़ के धावक को भी नहीं झेलनी पड़ती | इन सबसे बच - बचाकर जब दो दिलों के बीच की दूरियाँ ख़त्म हो रही होती हैं तो उन जिस्मों के बीच की किलोमीटर वाली दूरियाँ बढ़ने लग जाती हैं ।
सच कहूँ तो पूरे साल मुझको बस इसी दिन का इम्तज़ार रहा करता है । चाँद बेहद करीब हुआ करता है । और हर पूर्णमासी से ज्यादा बड़ा भी दीखता है । मैंने तो पहले ही बताया है कि चाँद में मुझे सिर्फ सफ़ेद रोशनी ही नहीं दिखती वरन कोई महबूबा दिखती है । बेशक तुम । और कौन ?
वक़्त भी कितना सितमगर होता है | जब दो शख्स करीब होते हैं तो दूर जाने के बहाने, सैकड़ों बहाने खोज लाता है और जब दो दिल करीब आ रहे होते हैं तो जाने कितने रोड़े दिखाता है राह के | इतनी मुश्किलें तो पगबाधा दौड़ के धावक को भी नहीं झेलनी पड़ती | इन सबसे बच - बचाकर जब दो दिलों के बीच की दूरियाँ ख़त्म हो रही होती हैं तो उन जिस्मों के बीच की किलोमीटर वाली दूरियाँ बढ़ने लग जाती हैं ।
ऐसे वक़्त में हम अपने जिन्दगी के दोराहे पर होते
हैं । किसी की रूह से रिश्ता तो कायम तो कर लेते हैं पर उसके दीदार को हरपल तरसने
लगते हैं । कि वक़्त नहीं होता हमारे पास । अपने लिए । अपने किसी खास के लिए । अपने
दिली जज़्बात के लिए । हम बढ़ रहे होते हैं अपने कैरियर के शिखर की ओर । प्रमोशन, ट्रान्सफर और मूव ऑन । जब जिन्दगी का मतलब ही यही रह जाता है बस । उस वक़्त
ये चाँद ही तो है जो रात के अंधियारे में तुम्हारी भी बॉलकनी में होता है और मेरी
भी । तुमसे भी बात करता है और मुझसे भी । कि जिस रात चाँद नहीं होता वो रात गुजारे
नहीं गुजरती । ऐसा लगता ही नहीं की तुमसे कोई बात हुयी या तुम कुशल से हो | जान
पड़ता है कि दुखों का पहाड़ आज हमपर ही टूट पड़ा है | फिर ख्यालों में जीतने लगता हूँ
कुछ लम्हे | जो न जाने कब बीत चुके हैं | तुम्हारे साथ | हमारे साथ | कि जिन्दगी
में दोबारा नहीं मिलते गुजरे हुए पल | गुजरी हुयी चीजें | और कुछ लोग |
अब सोंचता हूँ न जाने कब होंगे दोनों एक साथ, एक ही शहर में, एक ही ऑफिस में, एक ही...
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