Wednesday 28 March 2018

ख़त

खत

'सच बताओ । इन दिनों कौन बेवकूफ खत लिखता है ।' उसने मजाक उड़ाते हुये कहा ।
'पर फ़ोन पर की बातें तो रात गुजरते ही भूल जाती हो तुम । कल कंपनी गार्डन में मिलने को आओगी बोला था तुमने । और शाम को तुम्हारा फ़ोन भी नहीं लग रहा था ।'  खत लिखने वाले बेवकूफ लड़के ने मासूम सा जवाब दिया ।
लड़की खिलखिलाकर हँस पड़ी ।
'अच्छा तो कल जनाब कंपनी गार्डन में इंतज़ार कर रहे थे । मोहब्बत करने लगे हो क्या मुझसे ?' उसने पूछा ।
'मोहब्बत का तो नहीं पता पर तुम्हारी बात का भरोसा करने लगा हूँ । लेकिन तुमने धोखा दे दिया कल ।' लड़के ने सीधा जवाब नहीं दिया ।
'अभी चलें ।'
'नहीं, अभी उत्तम सर की ऑप्टिक्स की क्लास है, उसके बाद चलते हैं ।'
'तुम भी न कितने अनरोमांटिक टाइप के हो । और इतना पढ़ कर करोगे क्या ? नौकरी?'
लड़के ने नाराजगी भरी नज़रों से उसकी ओर देखा । पर उसने बात जारी रखी ।
'देखो, तुमको नौकरी तो मिलने से रही । हाँ, लिखते अच्छा हो तुम । तुमको प्रोफेशनल राइटर होना चाहिए । कल तुमने जो आर.पी.एस. सर की नोट्स में लेटर रखा था उसको पढ़ा मैंने । पहले तो तुम्हारी इस हरकत पर हँसी आयी पर फिर मैंने पाया तुम्हारी हिंदी कमाल की है और उपमाएँ जो तुम देते हो कि खत को छुपाने की जरूरत भी नहीं...ओह्ह..मैं खत तो तकिये के नीचे ही भूल आयी और बिस्तर मम्मी सेट करती हैं ।' 
अब लड़की थोड़ा चिंतित सी मुद्रा में थी ।
लड़के ने कहा - बेफिक्र रहो ! और सुनो, खतों की अहमियत सिर्फ तकिये के नीचे नहीं वरन दिल की तहों में होनी चाहिए, और अगर खत छुपाने की जरूरत ही नहीं है तो फिर किस बात की चिंता ?
'चलो न, कंपनी गार्डन चलते हैं ।' लड़की ने फिर कहा ।
अबकी बार लड़के ने क्लास की परवाह नहीं की और कंपनी गार्डन में पब्लिक लाइब्रेरी के पीछे वाले कोने में गेंदे के फूलों के बीच कहीं गुम हो गए ।

©नितिन चौरसिया

Tuesday 27 March 2018

अश्क़ १

मार्च का महीना बीतने को था और दोनों ने इलाहाबाद छोड़ने का मन बना लिया था । एक को लखनऊ या दिल्ली जाने का जुनून था तो दूसरे को वापस अपनी कविताओं और वायलिन की दुनिया में । अपने घर में; जहाँ वो हो, उसके शौक हों और थोड़ा एकांत भी । जहाँ रहकर वो इस बात का एहसास पा सके कि जिंदगी में किसी के होने या न होने से कितना फर्क़ आता है ।

स्नातक की परीक्षा के बाद महेश ने एम बी ए के लिए लखनऊ के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रवेश ले लिया और मधूलिका ने कोलकाता यूनिवर्सिटी में म्यूजिक के कोर्स में दाखिला ले लिया ।

आज दोनों इलाहाबाद शहर को छोड़ दूसरे शहर में जाने को तैयार थे । दोनों के सामने जिन्दगी में हासिल करने के लिए मंजिलें भी थी और मंजिलों तक ले जाने वाले रास्ते भी । लेकिन शायद रास्ते कभी दोबारा न मिलने वाले थे ।

बैंक रोड में अलग-अलग दिशा में जाने के लिए दोनों खड़े थे । शब्दों से ज्यादा बातें तो निगाहें कर रही थी ।
कई सारे वादे आँखों से छलक कर नीचे ढुलक रहे थे और होठों की छद्म मुस्कान उनको रोक सकने में असमर्थ थी ।

मधूलिका ने सन्नाटे को तोड़ा ।
'अब कब मिलोगे?'
'जब बुला लो', महेश ने नज़रें बचाते हुए कहा ।
'घर आओगे मेरे?', मधूलिका ने प्रश्न भरी नज़रों से महेश की ओर देखा ।
'बारात लेकर', महेश ने जवाब दिया और मधूलिका के कपोलों को चूम लिया ।

दोनों की आँखों से निकले अश्रुबिन्दु कपोलों से ढुलक कर धूल में कहीं खो गए । जैसे कह रहे हों कि बाकी वादों की तरह ये भी एक झूठा वादा है ।

#नितिन_चौरसिया

Thursday 8 March 2018

उन पंक्षियों के नाम जो चारदीवारी तोड़ना चाहते हैं!



न हाथों में हथकड़ियाँ,
न पैरों में जंजीरें थी,
फिर भी उसके दृश्यपटल पे,
कितनी ही तस्वीरें थीं,
तस्वीरें या ख़्वाब
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

इंद्रधनुष से लाल लिया रंग,
और धरा पर डाल दिया,
किसलय की हरियाली को,
जरा आसमान में डाल दिया,
श्वेतश्याम या रंगयुक्त
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

*************************

थी एक चारदीवारी जिसमें,
चहल-पहल थी, भीड़ भी थी,
लेकिन कुछ ऐसे पंक्षी थे,
जो बँधे न थे, आज़ाद न थे,
पर थे या पर कटे
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

फर-फर करता एक परिंदा,
आसमान में दाखिल था,
ऊँचे उड़ते गिद्धों की नज़रों में
जाकर खटका वो,
राह मिली या भटक गया
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

उसे खोजते और परिंदे,
आसमान में दाखिल थे,
गिद्ध समूह में चर्चा थी,
क्या चारदीवारी नहीं रही?
टूट गयी या तोड़ दिया
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

******************

ख़्वाब थे वो, थे रंगयुक्त,
पर कटे नहीं थे, भटक गए,
जब भटके तो मिल गयी डगर,
फिर चारदीवारी तोड़ दिया,
छूट गयी या छोड़ दिया
कोई ये बतला दे तो बात बने ।


नज़्म : उसके एक दीवाने हम भी हैं

नज़्म : उसके एक दीवाने हम भी हैं ~ इक दीवानी लड़की है जो खुद में खोई रहती है उसकी इस मासूम अदा के एक दीवाने हम भी हैं उस दीवानी लड़की क...