धुआँ,
वैसे तो दो तरह का होता है
एक आग से उठने वाला और
एक बिना आग के उठने वाला ।
पहले से डरते हैं
माँ, पापा, और
दूर शहर का एक बच्चा!
जिसने देखा था धुएँ में
अपने शहर को राख होते हुए ।
दूजे से डरते हैं
मैं, आप और
रूहानी मोहब्बत के फ़रिश्ते!
जिन्होंने देखा है कई बार
जिस्मों से रूह को आजाद होते हुए ।
क़यामत आती है
जब उठते हैं ये दोनों धुएँ
एक साथ,
या एक दूसरे के बाद !
फिर बचते हैं सहमे हुए
घर और शहर ।
©नितिन चौरसिया
(हिंदीनामा की शब्द 'धुआँ' पर आयोजित प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त)