Thursday 7 December 2017

यूँ तो हमने लाख हसीं देखे हैं!

यूँ तो हमने लाख हसीं देखे हैं!

पर क्या सूरत ही सब कुछ है? नहीं । सीरत और नीयत भी ध्यान में रखना चाहिए । पर कैसे? चंद मुलाकातों में या प्यार भरी मीठी - मीठी बातों में लोग नक़ाब के पीछे छिपे जान पड़ते हैं । 'बी योरसेल्फ' कहते जाते हैं और हर मुलाक़ात में एक 'न्यू मास्क' पहन कर आ जाते हैं ।

उसपर भी सावन के अंधे को हरा ही हरा दीखता है । अब लो हुयी समस्या किससे प्रेम करें?

सर थॉमस कैरिउ ने तो बड़ी आसानी से कह डाला १७ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ही -

'बट अ स्मूद एंड स्टेडफ़ास्ट माइंड, जेंटल थॉट्स एंड कॉम डिजायर्स'

यानि कि सरल स्वभाव और दृढ़ विचारों वाला कोई जिसकी त्रिष्णाएँ शांत हों... कहाँ मिलेगा कोई ऐसा? किस चिराग की रोशनी में दिखेगा कोई इस तरह का? जो आपके मुताबिक प्यार करने लायक हो

मेरे संज्ञान में तो लगभग सारी प्रेम कहानियों की शुरुआत किसी न किसी रूपसी मोहिनी कन्या के मोहजाल में फँसे लड़के ही चारो तरफ तरह – तरह के ताने बाने के साथ करते आये हैं | कई बार दुत्कारे गये हैं, पिटे भी हैं, और सफल भी हुए हैं | ये बात और रही कि बाद में धोखे खाकर उनका ध्यान रूप की सुन्दरता से निकलकर रूह के माधुर्य की तरफ खिंच गया हो | उसके बाद उन्होंने किसी को अपना लिया हो या किसी के द्वारा अपना लिए गए हों | और अगर किसी कहानी में प्रेम के अंकुर स्त्री की ओर से प्रस्फुटित हुए भी हैं तो वो किस्से अपने सुखद अंजाम तक तब तक नहीं पहुँचते दिखे जब तक वो स्त्री कामिनी-कंचन स्वरूपा न हुयी ? हरदम प्रेम दुत्कारा जाता रहा | ये बातें दोनों पक्षों (स्त्री और पुरुष) पर फिट बैठती दिखती है |

पर प्रेम करने के लिए किसी खास को खोजने की जरूरत ही क्यूँ है ? सवाल ये भी है | क्या जो हासिल है उसमे प्रेम के निहितार्थ कुछ भी नहीं ? या जो हमें हासिल है उससे हम प्रेम करना जानते ही नहीं ? या हम और बेहतर की तलाश में रहते हैं ? या हम सीखना नहीं चाहते किसी सीधी, सरल, स्वाभाविक, ईश्वरीय चीज से प्रेम करना ? उससे प्रेम करना जिसमे सौन्दर्य चाहे थोडा कम हो पर प्रेम और मानवीय सद्गुणों का खज़ाना हो ? सर थॉमस कैरिउ ने शायद इनमे से ही किसी या किसी संभावित युग्म अथवा युग्मों वाले गुणवान स्वरुप से प्रेम करने की बात की होगी | रूप और श्रृंगार को तो वो पहली ही पंक्ति में नकारते नज़र आते हैं ‘ही दैट लव्ज अ रोजी चीक...’ |

इसी सिलसिले से मिलता हुआ एक हिंदी फिल्म का पुराना गीत है – ‘दिल सच्चा और चेहरा झूठा | वहाँ भी ठीक यही बात कही गयी है | पर जिस व्यक्ति की तलाश करने को, जिनसे प्रेम करने को कवि कह रहा है उसके लिए, उन जैसे लोगों को खोजने के लिए, किसी ने कोई उपाय नहीं सुझाया है | तो ये किस्सा पूरी तरह से ट्रायल एंड एरर वाले कांसेप्ट पर ही काम करेगा | यानि खुशकिस्मती आपकी अगर पहली ही बार में रूहानी इश्क़ को कोई मिल गया वरना खोजते फिरिए इस गोल-गोल दुनिया में घनचक्कर बनकर | अब जरा ये अंदाजा लगाइए कि कितने प्रतिशत लोग दुनिया में ऐसे होंगे जिनका पहला ही ट्रायल सक्सेस हो जाता हो ? तो ऐसे ही नहीं लड़कों को मोहब्बत हो जाया करती हर दूसरी, तीसरी या चौथी लड़की से | ये ट्रायल चल रहा होता है | पर हाँ, ये ट्रायल इन गीतों, कविताओं से बाहर हकीक़त की पृष्ठभूमि पर चल रहा होता है | यहाँ रोजी चीक्स भी चाहिए और कोरल लिप्स भी | स्मूद स्टेडफ़ास्ट माइंड भी चाहिए | साथ ही जेंटल थॉट और कॉम डिजायर भी | चाहिए वो जो दिल में भी फिट हो जाये, नज़रों में भी और साथ ही साथ घर-परिवार वाले भी जिसके लिए हामी भर दें | क्योंकि हमारे यहाँ तो प्रेम को अनवरत सात जन्मों का बंधन ही माना जाता है | बाकी दुनियादारी को छलावा | तो जब तक ट्रायल चल रहा है जीवन में तब तक के लिए बस एक ही ट्रैक बजता रहेगा – ‘यूँ तो हमने लाख हसीं देखे हैं, तुमसा नहीं देखा...’





1 comment:

  1. सराहनीय विचार। किन्तु बस वार्तालापों में। आखिर तो खूबसूरत DP पर ही सबसे ज्यादा लाइक्स आने हैं।

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