Saturday 25 November 2017

सेंट्रल लाइब्रेरी



सेंट्रल लाइब्रेरी 
नवम्बर २०१० ।

मौसम में ठण्डक आ गयी थी और वार्षिक परीक्षा की तिथियाँ भी । छात्रों में नोट्स इकट्ठी करने का उत्साह बढ़ गया था । विज्ञान संकाय में प्रथम वर्ष में प्रोफेसर माताम्बर तिवारी, प्रोफेसर एस. एस. शुक्ल, और प्रोफेसर बी. रॉय मैथमेटिक्स के तीनों पेपर के लिए क्रमशः चर्चित थे ।
सौभाग्यवश (दुर्भाग्यवश) हमें तीनों में से प्रथम वर्ष में किसी से पढ़ने का अवसर नहीं मिला । खैर, सेक्शन जे के छात्रों का हाल बिल्कुल थ्री इडियट्स के रैंचो की तरह ही था । हर जगह ज्ञान बँट रहा है । जितना मिल सके ले लो । तो सेक्शन जे के लड़के अपनी क्लास भी अटेंड करते और साथ ही इन तीन और ऐसे ही कई और प्रोफेसरों की क्लास में जाते (यहाँ केवल मैथमेटिक्स का जिक्र है फिजिक्स का जिक्र उतना आवश्यक नहीं है अभी ) ।
नोट्स इकट्ठी करने को तो किसी से भी नोट्स ली जा सकती थी सेक्शन एस या सेक्शन सी एस के छात्रों में से । पर लड़के नोट्स बनाते ही कहाँ हैं जैसे पूर्वाग्रहों से ग्रसित लड़के
या यूँ कहें कि अपनी वाली कही जाने वाली लड़की से मिलने
या बात करने के बहाने खोजने वाले लड़के 

या सेक्शन जे में न पायी जाने वाली प्रजाति से अपना परिचय करवाने की जद्दोजहद में रहने वाले लड़के
नोट्स माँगने के लिए दिल-ए-दिलदार की चौखट में न जायें तो कहाँ जायें ? और आशिक़ी के तमाम सफल किस्सों की शुरुआत नोट्स के लेनदेन से ही तो शुरू होती है ।

छायाचित्र : विश्वविद्यालय की वेबसाइट से साभार

केंद्रीय पुस्तकालय में आज उसी सेक्शन जे का एक लड़का और सेक्शन एस की एक लड़की नोट्स के आदान प्रदान के लिए मिल रहे थे । डील थी बी. रॉय सर के नोट्स के बदले फिजिक्स में 'विस्कोसिटी' वाले प्रयोग की रीडिंग देने की और ओरिफिस का मेज़रमेंट बताने की ।
शाम के पौने चार बजे जैसा कि पहले से तय था दोनों केंद्रीय पुस्तकालय के बाहर मिले और फिर ऊपर रीडिंग हॉल की तरफ निकल गए । दोनों के हाथ में अपने नोट्स और रफ़ रजिस्टर थे । रीडिंग हॉल तक जाने वाली सीढ़ियों के पास पहुँचते - पहुँचते दोनों ही विज्ञान से इतर साहित्य की बातें कर रहे थे । लड़के ने 'गुनाहों के देवता' का जिक्र करते हुए 'सुधा और चन्दर' का किस्सा, जो इन्ही सीढ़ियों में कहीं अतीत में हुआ था, कहते हुये बड़े नटखट अंदाज़ से लड़की की ओर देखा और मुस्कुराते हुये ऊपर की चौथी सीढ़ी पर बैठ गया । 'पागल हो क्या ?' लड़की ने कहा और आगे निकल गयी ।
रीडिंग रूम में नोट्स एक्सचेंज की गयी । ओरिफिस का मेज़रमेंट दिया गया । और फिर 'कुर्तुलेन हैदर' जी की 'देह का दुःख' कहानी संग्रह, जो अभी कुछ दिनों पहले ही दोनों ने पढ़ी थी उनकी कहानियों पर अपनी - अपनी प्रतिक्रिया देने लगे । 'निकहत' और 'सलीम' के किस्से और उनकी दीवानगी पर बात करते - करते दोनों एक-दूसरे की पसंद - नापसंद और रिलेशनशिप की बातों तक पहुँच आये थे । दुर्भाग्यवश दोनों के किस्से में 'निकहत' के किस्से जैसी कुछ - कुछ समानता थी । लड़के ने सही मौका समझ लड़की के हाथ पर अपना हाथ रख दिया । लड़की ने लड़के की तरफ देखा । आँखों में आँखें डालकर । जैसे झांककर देखना चाहती हो कोई जख़्म है या नहीं और है तो गहरा कितना है । दोनों के चेहरे करीब आ गए थे । निगाहें ठहरी हुई थी । लब आपस में कैद हो गए थे । दिन कब का ढल चुका था । दोनों की मोहब्बत कहीं और थी जिसका अक्श शायद दोनों ने एक - दूसरे में पा लिया था ।

Friday 24 November 2017

मनुज

शीर्षक - मनुज

पतवारों के साथ मनुज का साहस तो बढ़ जाता है,
पर संकट के समय मनुज का ह्रदय बहुत घबराता है,
आत्मशक्ति जागृत करने को खुद सम्बल भरना होगा,
जीवन है एक कठिन यात्रा मनुज तुम्हे चलना होगा ||

जैसे चलते सूर्य - चन्द्रमा - पृथ्वी अपनी धुरी पर,
 तुम भी खोजो अपनी धुरी कर्तव्यों के शुभ पथ पर,
लक्ष्य मनुज का क्या है ? इसे समझने को जलना होगा,
जीवन है एक कठिन यात्रा मनुज तुम्हे चलना होगा ||

दीप्तिमान रहता है अम्बर सूर्य - चन्द्र और तारों से,
जाने कितने मनुज प्रेरणा पाते हैं अवतारों से,
घनघोर घटा छायी हो तो बिजली बन तुम्हे निकलना होगा,
जीवन है एक कठिन यात्रा मनुज तुम्हे चलना होगा ||

है जिजीविषा जिसमे उसने हर पीड़ा ठुकराई है ,
इच्छाबल के आगे कोई शक्ति कहाँ टिक पाई है,
जब राह मुखर न हो कोई तब जुगनू - सा जलना होगा,
जीवन है एक कठिन यात्रा मनुज तुम्हे चलना होगा ||

जो पीर परायी जाने है और कर्तव्यों के पालक है,
आने वाली पीढ़ी के वे ही सच्चे उद्धारक हैं,
हर किरण जहाँ छुप जाती हो वो प्रकाशपुंज बनना होगा,
जीवन है एक कठिन यात्रा मनुज तुम्हे चलना होगा ||

धन - वैभव - यश - कीर्ति नहीं होते हैं मानव के द्योतक,
निष्ठा - भाव - वचन - सहिष्णुता - करुणा ये हैं मानवता पोषक,
मनुज अगर कहलाना है तो कुछ सद्गुण भरना होगा,
जीवन है एक कठिन यात्रा मनुज तुम्हे चलना होगा ||

कीर्तिगान करती वसुंधरा युगों युगों तक उस मनु का,
जिसने जीवन दिया साथ ही दिया लक्ष्य भी जीवन का,
जीवन लक्ष्य प्राप्त करने को मार्ग उचित चुनना होगा,
जीवन है एक कठिन यात्रा मनुज तुम्हे चलना होगा ||




Monday 13 November 2017

बाल दिवस पर..


रोशनी और रोहित क्रमशः कक्षा ६ और ८ में पढ़ते हैं | आज भी अपने पापा की बाइक पर बैठ कर स्कूल जा रहे हैं | उनको बताया गया है कि आज स्कूल में फंक्शन होंगे और बच्चों के लिए मस्ती के कई आयोजन होंगे | रोज मुँह लटकाकर स्कूल जाने वाले दोनों बच्चों का चेहरा आज इतना खिला था कि उनको न तो आज जगाने की मशक्कत करनी पड़ी और न ही तैयार करने की | केवल फर्स्ट हाफ सेशन की किताबों से भरा बैग भी आज बहुत ही हल्का लग रहा था | स्कूल पहुँचने पर दोनों को याद आया कि उन्होंने तो क्लास टीचर का दिया होमवर्क पूरा ही नही किया है | अब दोनों बच्चे रोने लगे थे |

स्कूल में प्रार्थना सभा में आज होने वाले कार्यक्रमों का विवरण दिया गया | असेंबली में बताया गया कि आज क्लास में कोई होमवर्क चेक नहीं होगा और न ही कोई होमवर्क दिया जाएगा | कक्षा ५ का सबसे शरारती बच्चा दुखी था क्योंकि अब दो दिनों तक उसे किसी और बच्चे को होमवर्क के लिए तंग करने का मौका नहीं मिल पायेगा | स्कूल में उसका सबसे पसंदीदा काम यही था | उसके बगल बैठने वाले दोनों बच्चों के चेहरों पर आज कई दिनों बाद मुस्कान आयी |

इंटरवल के बाद बड़े बच्चों को ‘साइंस सिटी’ ले जाया जाएगा | सुनते ही रौशनी ख़ुशी से उछल पड़ी | उसने अपने पापा से कई बार ‘साइंस सिटी’ जाने की बात की थी | पर उसके पापा किसी न किसी बहाने टाल जाते | हकीक़त में उनके पास न तो एक्स्ट्रा खर्च करने की क्षमता थी और न ही समय | रोहित को कोई दिलचस्पी नहीं थी | पिछले कई सालों से छठी, सातवीं और आठवीं के बच्चो को आज के दिन साइंस सिटी ले जाया जाता था | उसने सडा – सा मुँह बना लिया |

कक्षा ५ तक के बच्चों के लिए स्कूल में ही फेयर लगेगा | सुनकर अकरम की बेताबी और बढ़ गयी | उसको विज्ञान से बेहद लगाव था | क्लास में उसने अपनी क्लास टीचर मिस सुरेखा से जब अपनी तमन्ना बतायी तो उन्होंने प्रिंसिपल से बात करने का आश्वाशन दिया | प्रिंसिपल ने अकरम को जाने की परमिशन दे दी |
शाम को अकरम नेअब्बू से कहा – चाँद नहीं डूबता कभी | आज मैंने साइंस सिटी में मूवी में सुना |
अकरम की उसके अब्बू ने पिटाई कर दी |

रोशिनी और रोहित घर वापस आ गए थे | रोशिनी ‘साइंस सिटी’ के अनुभवों को अपनी माँ से साझा कर रही थी | रोहित अपने पापा से अगले साल किसी दूसरे स्कूल में एडमिशन करवाने को कह रहा था | वहाँ बाल दिवस पर हर साल अलग – अलग जगह ले जाया जाता था | आज पहली बार माँ - बेटी की किस्सागोई में माँ को पहले नींद आ गयी | रोशनी खुश थी | बहुत खुश |

रोहित की बात उसके पापा को समझ आ रही थी | उन्होंने सुबह बात करने की बात कही और उसको सो जाने को बोलकर खुद सो गए | सुबह रोशनी की माँ से उन्होंने कहा – रोशनी ने बहुत पढ़ लिख लिया है | इसको घर के काम सिखाओ | अगले साल से रोशनी स्कूल नहीं जाएगी |


( मित्र गुड्डू को संपादन कार्य के लिए आभार सहित)
©नितिन चौरसिया

Wednesday 8 November 2017

मेरी तकदीरों में है

मेरी तकदीरों में है

मेरे कल में, आज में जो है,
मेरे हर एहसास में जो है,
रूह में बस बैठा जो मेरे,
दिल की हर धड़कन में जो है,
साँसों के आने जाने में,
सरगम बनकर जो है बसता,
जिसको मैंने अपना माना,
जो मेरी तकदीरों में है |

जिसने मेरी नींद चुरायी,
खुली पलक में रहता है,
बंद अगर आँखें कर भी लूं ,
चेहरा जिसका दीखता है ,
मेरी हर कविता में केवल,
जिक्र उसी का रहता है,
जिसको मैंने प्यार किया है ,
जो मेरी तकदीरों में है |

मेरे हर अलफ़ाज़ में है,
ख़्वाबों की तहरीरों में है ,
वक़्त ने जिसको दूर किया कल,
वो अब भी तस्वीरों में है ,
मौसम कितने क्यूँ न बदले,
आज तलक जो कभी न बदला,
जिसको मेरे दिल ने चाहा,
वो मेरी तकदीरों में है |


प्रेम

प्रेम


मेरे दिल की गहराई का, पता लगाने आयी  थी 
मेरे अंतस में है क्या, यह भेद जानने आयी थी 
कुशल बड़ी तैराक थी लेकिन, काम कुशलता न आयी 
डूब गयी वो मुझ दरिया में, जिसकी आँखे खुद सागर थी। 

गूढ़ बहुत हैं प्रेम की बातें, लाभ - हानि सब भूल गया
किसी की कश्ती पार लगी, कोई मझधार में डूब गया 
जीवन के उज्जवल पृष्ठों पर, फिर भी प्रेम लिखा जाता है 
किसी ने साथ निभाया हो, या बीच राह में  छूट गया। 

खेल  प्रेम का बड़ा निराला , हार - जीत का निर्णय ऐसा 
कोई हार के जीत गया, तो कोई जीत के हार गया 
और कई दफे  ऐसा भी हुआ है यारो प्यार की बाज़ी में 
हर बाज़ी जीती उसने ही, जो प्रतिद्वन्दी से हार गया। 

© नितिन चौरसिया  

यादों के गवाह

यादों के गवाह 

एक चारपाई 
पर पड़े बिस्तर को 
इस तरह सहेज कर रखा है किसी ने 
जैसे बना दिया हो
कमरे में ही स्मारक कोई 


बिछी चादर 
पर पड़ी सिलवटें
सुना रहीं थी दास्ताँ 
किसी गुजरी 
सुनहरी चांदनी रात की 

दो आँखें 
ऐसी कातर नज़रों से 
एकटक निहार रही हैं
तकिये पर लगी 
लार की कुछ बूंदों के निशान 

जैसे 
अमृत की बूंदे 
गिर गयी हों छलक कर 
रेत में
और प्यासा रह गया हो 
कोई नश्वर देवता...

विरह का अमृत

विरह का अमृत फिर पीने दो

चंद पलों के लिए मिलो और 

बीती बातें याद आने दो 

फिर बिछड़ो-भूलो-प्यार-वफ़ा और 
विरह का अमृत फिर पीने दो 
सुख में भी हो दुःख में भी हो 
ऐसा अपना साथ चलो !
चंद पलों के लिए मिलो और
बीती बातें याद आने दो

प्रीत पुरानी पुनः नयी हो 

प्रेम प्रसून पुनः पुष्पित हो 

दुःख की बदली छंट जाने दो 
सुख की वर्षा हो जाने दो
चंद पलों के लिए मिलो और 
बीती बातें याद आने दो

नहीं - नहीं को हाँ होने दो 

दिल की धड़कन बढ़ जाने दो 

अधरों से अधरों का आलिंगन 
जो होता हो हो जाने दो 
स्वाति बूँद पपीहे को दो 
चाँद चकोर को मिल जाने दो 
चंद पलों के लिए मिलो और
बीती बातें याद आने दो

रोम- रोम पुलकित हो जाए 

मन की बातें मुखरित हो जाएँ 

प्रणय-पाश में बंधे दो ह्रदय 
अमावस पूनम हो जाने दो 
ध्येय नहीं तुमको पाना अब 
पर थोडा अभिमान तो हो 
चंद पलों के लिए मिलो और 
बीती बातें याद आने दो

बिछड़ो-भूलो-प्यार-वफ़ा और 

विरह का अमृत फिर पीने दो 

विरह का अमृत फिर पीने दो 
विरह का अमृत फिर पीने दो


स्वप्नों का व्यापारी

शीर्षक : स्वप्नों का व्यापारी

स्वप्न बेचने वाला एक दिन आया एक छोटी नगरी में
सुन्दर - सुन्दर स्वप्न भरे हैं बोला मेरी गठरी में
गली - गली आवाज़ गयी और लोगों ने उसे घेर लिया
लोगों में कौतूहल था – क्या बात सत्य है कुँजड़े की ?

भीड़ इकट्ठी देख देखकर कुंजड़ा मन में हरषाया था
स्वप्न बेचने का अवसर उसने इस नगरी में पाया था
उत्सुकतावश एक व्यक्ति ने - जो पेशे से बनिया था
उसने पूछा ‘क्या लाये हो ? जो मैं न ला पाया था ?’

स्वप्न सुनहरे लिए हुए हूँ मैं इस छोटी गठरी में
जो तुम सोंचो वो मैं बेंचू सब कुछ है इस गठरी में
सुनकर भीड़ ख़ुशी से चहकी सबने अपने स्वप्न कहे
उस कुँजड़े ने स्वप्न सभी के सच करने के वचन दिए

गुजर रहे थे तभी वहां से कुछ सिपाही राजा के
भीड़ जमा देखी तो बोले – पता करें क्या है जा के ?
सपने में डूबे लोग दिखे तब एक सिपाही तर्क किया
बोला गठरी तो खुली नहीं फिर मानूँ कैसे बात तेरी ?

था उस नगरी में प्रजातन्त्र और प्रजा मुग्ध थी कुँजड़े पर
कुंजड़ा बोला खोलूँ गठरी मैं बैठा दो गर मुझे तख़्त पर !
बच्चे – बूढ़े – नर – नारी सब त्रस्त थे अपने सपनों से
वो भूल गए सच होते हैं अपनी मेहनत से – कर्मों से

था लगा प्रजा को आज मिला है इक अवसर न जाने दें
है तख़्त बदलता हर पाँच वर्ष इक बार इसे भी आने दें
गठरी खोलेगा सच हो जायेंगे अपने सपने सारे
पर नहीं जानते थे वो अब क्या खेल करेगा ये प्यारे !

सबके दुःख मिट जायेंगे सब संपन्न हो जायेंगे
भेदभाव का अन्त होगा रोजगार सब पायेंगे
हर कलुषित कारागार में होगा निर्भय हम जी पायेंगे
और आएगा ‘रामराज्य’ हर राग – द्वेष मिट जायेंगे

पर जब आया स्वयं तख़्त पर सारे वादे भूल गया
था राज्य चलाना अब उसको नए स्वप्न बेचने शुरू किया
किया बेचना शुरू उसी ने कुछ चल अचल सम्पत्ति को
रख रखी थी पूर्व भूप ने संग्रह किसी विपत्ति को

आएगा, धन आएगा, फिर हम विकसित हो जायेंगे
अपनी नगरी के अन्दर हर घर विकास हम लायेंगे
ऐसा कहकर राजा ने फिर लोगों का विश्वास लिया
और विकास के आगमन का चप्पे – चप्पे प्रचार किया

वो भूल गया कुछ स्वप्न सुने थे उसने गरीब किसानो के
जो उपजाते थे अन्न मगर लाले थे उनके खाने के
व्यापारी...वो व्यापारी था व्यापारी की बात सुनी
भूल गया वह प्रजातन्त्र है है चुना उसे भी किसानों ने

एक रोज नगर के किसानों ने अपने सपनों की बात सुनाई थी
पर राजा ने भी स्वप्न देख उस नगर में सत्ता पायी थी
बोला सपने सच करने को जाकरके कर्म करो प्यारे
डालो खेतों में बीज, खाद और उपजाओ अनाज प्यारे

उसपर किसान ने जब उसको महँगाई याद दिलायी थी
अपना कर्ज गिनाया था माली हालत बतलायी थी
खेती में आता खर्च बहुत न न्यूनतम मूल्य बढ़ाये हैं
था याद दिलाया उसको उसने झूठे स्वप्न दिखाए हैं

राजा को चुप देख जरा सा जनता में आक्रोश हुआ
अहंकार की जननी सत्ता राजा को भी क्रोध हुआ
रामराज्य की बात कही थी – जाने वो कैसा शासन था ?
रक्त बहा फिर हलवाहों का सपना क्या खूब दिखाया था !

प्रजा नहीं है कामचोर न उसको मेहनत से डर है
पर रोजगार के उत्तम अवसर अब भी नहीं नगर में हैं
स्वप्न बेचने वाले तूने सत्ता खूब संभाली है
तेरा सपना सच हुआ मगर जनता में अब भी बदहाली है...




नज़्म : उसके एक दीवाने हम भी हैं

नज़्म : उसके एक दीवाने हम भी हैं ~ इक दीवानी लड़की है जो खुद में खोई रहती है उसकी इस मासूम अदा के एक दीवाने हम भी हैं उस दीवानी लड़की क...