Friday 26 January 2018

इश्क़ में होना

इश्क़ में होना है, आबाद हो जाना,
सारी उलझनों से, आजाद हो जाना,
फ़िक्र रहती है, तो बस उनकी,
जिनका होना है, पूरी इक मुराद हो जाना !

इश्क़ में होना है, आसान हो जाना,
दुनिया की नजरों में, वीरान हो जाना,
मिलना सबसे मगर, ग़ुम कहीं और रहना,
जहाँ होना है, चाँद को पाना !

इश्क़ में होना है, किरदार में ढल जाना,
बेज़ार होती जिन्दगी का, फिर से सँवर जाना,
चलना रास्तों में, इस बेखयाली से,
कि गिरना भी है, यहाँ संभल जाना !

इश्क़ में होना है, महबूब-ए-वतन हो जाना,
वतन के लिए सजना, तैयार हो जाना,
दिल में फ़िक्र उसकी, जुबाँ पे जिक्र रखना,
जिसके लिये मरना भी है, जिन्दाबाद हो जाना !


Tuesday 23 January 2018

राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट): कल, आज और कल

राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट): कल, आज और कल

राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा यानि नेट पूरे भारतवर्ष में आयोजित होने वाली परास्नातक स्तरीय परीक्षा है | इसे यूजीसी-नेट (वर्तमान में सीबीएसई-नेट) के नाम से भी जाना जाता है | इस परीक्षा का प्रावधान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों में योग्य शिक्षकों की भर्ती एवं शोध कार्य में सहयोग तथा पूर्णकालिक शोध के लिए शोध छात्रवृत्ति ‘जूनियर रिसर्च फ़ेलोशिप (जेआरएफ)’ प्रदान करने के लिए किया गया था | यह परीक्षा उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन कार्य के लिए न्यूनतम अर्हता है | वर्तमान समय में यूजीसी नेट के लिए कुल १०१ विषय हैं और देश की तकरीबन ९१ शहरों में परीक्षा केंद्र बनाये जाते हैं |
जून २०१४ तक इस परीक्षा का आयोजन स्वयं यूजीसी कर रहा था | वर्ष २०१२ तक परीक्षा में तीसरा प्रश्नपत्र विषय विशेषज्ञता का होता था | जो पूर्णतया लिखित होता था | इस प्रकार उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन करने का मार्ग थोडा दुर्भर अवश्य हो गया था पर गुणवत्ता परक शिक्षा को ध्यान में रखते हुए यूजीसी ने इस परीक्षा को वर्ष में दो बार आयोजित करना उचित समझा | तृतीय प्रश्नपत्र के व्यक्तिपरक होने से उसको जाँचने में समय भी अधिक लगता था और पारदर्शिता का संकट उत्पन्न होता था जिससे निजात पाने के लिए वर्ष २०१२ में दिसम्बर में आयोजित नेट की परीक्षा में वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को शामिल किया गया | नेट के परिणाम में अभूतपूर्व कमी दिखाई पड़ी | वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर में किसी प्रकार की गुंजाइश न होने का सबसे ज्यादा खामियाजा हिंदी भाषा के माध्यम से पढने वाले छात्रों को उठाना पड़ा क्योंकि नेट की परीक्षा में पूछे गए सवालों के दिए चारों विकल्प एक जैसे ही थे | यूँ कहें की चारों विकल्प हिंदी माध्यम के किसी न किसी लेखक की पुस्तक के हिसाब से सही था | उत्तर कुंजी जारी होने के बाद अनेकों आपत्तियां दर्ज की गयीं जिनपर ढेरों बहस हुयी, और फिर अंग्रेजी में दिए गए विकल्पों पर ही चर्चा का प्रावधान हुआ | यहाँ इस बात को बताता चलूँ कि यूजीसी ने आज भी अपने सिलेबस में हिंदी माध्यम की पुस्तकों को शामिल नहीं किया है (कुछ विषयों को छोड़कर) |
परीक्षा का पैटर्न बदल जाने से कॉपी की जगह ओएमआर शीट ने ले ली और फिर इनको जाँचने के लिए यूजीसी को दूसरी एजेंसियों से मदद ली जाने लगी | जून २०१४ की परीक्षा के बाद यूजीसी और एमएचआरडी ने इस परीक्षा को करने का जिम्मा पहले से ही एआईट्रिपलई (अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा) और सीबीएसई बोर्ड की परीक्षा को सम्पन्न करा रही सीबीएसई को सौंप दिया | जिससे प्रश्नपत्र में किताबी भाषा के होने का बोध शामिल हो गया | वस्तुनिष्ठ प्रश्नों में दिए गए विकल्प किसी उत्तम दर्जे की सन्दर्भ पुस्तक का अंश होते | उनको उनके मूल लेखक की ही भाषा में दिया गया उत्तर को मान्य करार दिया गया | इसपर कई मंचों और विद्वानों ने अपनी आपत्ति दर्ज करायी पर किसी ने भी इसका उत्तम विकल्प नहीं सुझाया | कई विद्वानों ने यहाँ तक कहा कि जिस परीक्षा को अध्यापन का मापदण्ड बनाया जा रहा है उसमें ही उच्च शिक्षा के उद्देश्य के साथ शिक्षा के मूल उद्देश्य की अवहेलना की जा रही है | अतः यह आज भी यथावत है |
नवम्बर २०१७ के पहले तक नेट के प्रथम प्रश्नपत्र में कुल ६० प्रश्न होते थे जिनमे से परीक्षार्थी को किन्हीं ५० प्रश्नों के उत्तर देने होते थे जो परीक्षार्थियों के लिए लाभकारी था | सीबीएसई ने परीक्षा के पैटर्न में अल्प बदलाव करके नवम्बर २०१७ में प्रथम प्रश्नपत्र में कुल ५० प्रश्न ही शामिल किये जिनमे सभी अनिवार्य थे | तब प्रश्नपत्र में अन्य किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया था | परन्तु परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए न्यूनतम कटऑफ में परिवर्तन किया गया और पहले जहाँ हर पेपर को अलग अलग भी उत्तीर्ण करना आवश्यक होता था वहाँ कटऑफ को ओवरआल कटऑफ बनाया गया | उत्तीर्ण होने वाले छात्रों का प्रतिशत पूर्व में १५% से मात्र ६% कर दिया गया और जेआरएफ की प्रतिशतता नेट उत्तीर्ण परीक्षार्थियों की १५% ही रहने दी गयी | नतीजन जनुअरी २०१८ में जारी परिणामों में एक बार फिर नेट की कटऑफ गिर गयी और साथ ही उत्तीर्ण परीक्षार्थियों की संख्या में भी भारी कमी देखने को मिली |
परीक्षार्थियों ने कई बार यूजीसी को लिखा भी था कि जब तीसरा प्रश्नपत्र भी वस्तुनिष्ठ ही है तो एक ही विषय के एक ही दिन दो अलग-अलग प्रश्नपत्र क्यों सम्पन्न कराये जा रहे हैं? इनको एक साथ करके समय और धन दोनों की बचत की जा सकती है | इस बात पर यूजीसी, एमएचआरडी और सीबीएसई की बैठकों से परीक्षा के पैटर्न में एक बार फिर से बदलाव देखने को मिला है | सीबीएसई ने अपने नए विज्ञापन में स्पष्ट किया है कि जुलाई २०१८ को होने वाली सीबीएसई-नेट परीक्षा में अब कुल दो ही प्रश्नपत्र होंगे | प्रथम प्रश्नपत्र नवम्बर २०१७ के जैसा ही होगा | द्वितीय प्रश्नपत्र में अब कुल १०० प्रश्न होंगे जिनमे सभी प्रश्नों के २ अंक निर्धारित किये गए हैं अर्थात अब पूर्णांक ३५० अंकों के बजाय ३०० अंकों का होगा |
इन सबसे इतर जो सबसे बड़ा बदलाव किया गया है नेट परीक्षा में वो है जेआरएफ की उच्च आयु सीमा में परिवर्तन | जेआरएफ के लिए उच्च आयु सीमा को २८ वर्ष से बढ़ाकर ३० वर्ष कर दिए जाने का निर्णय स्वागत योग्य है | जहाँ एक ओर यूजीसी नेट परीक्षा को कठिनतर किये जा रही है वहीँ दूसरी ओर अभ्यर्थियों को आयु सीमा में छूट प्रदान करके उन्हें आकृष्ट भी कर रही है | बदले हुए पैटर्न के साथ यूजीसी नेट परीक्षा प्रथम दृष्टया अभ्यर्थियों के हित में है |
यूजीसी और सीबीएसई ने पिछले वर्षों से चली आ रही नकारात्मक अंकों की माँग को इस बार भी नहीं स्वीकार किया है | अभ्यर्थियों एवं विद्वानों का बड़ा तबका इस बात की पैरवी करता है कि नकारात्मक अंक न होने से कुछ अयोग्य छात्र भी भाग्य की नैया पर स्वर होकर पार लग सकते हैं जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता | अतः आने वाले समय में सीबीएसई नकारात्मक अंकों को परीक्षा पैटर्न में स्थान दे सकती है | नकारात्मक अंको के साथ ही परीक्षा में अंको के वितरण के लिए स्टेप मार्किंग और नॉर्मलाईजैसन जैसी नवीन प्रणालियों का प्रयोग परीक्षा को और पारदर्शी तथा विरोध रहित बनाने हेतु किया जा सकता है |

नितिन चौरसिया

Friday 12 January 2018

मोहब्बत हो जाती है



मोहब्बत
हो जाती है
कभी-कभी उन लम्हों से
जो अनजाने ही
एकांत में अपनी
गुस्ताखियों का सबब बने जाते हैं !

मोहब्बत 
हो जाती है 
अक्सर ही उन रास्तों से
जो कभी ले जाते थे
माशूका के दर तक लेकिन 
आज वीरान हुए जाते हैं !

मोहब्बत 
हो जाती है
अक्सर ही उन अल्फ़ाज़ों से
जो बड़ी बेबाकी के साथ 
कहे जाते थे उन दिनों
आज खामोश हुए जाते हैं !

मोहब्बत 
हो जाती है
कभी- कभी उन दोराहों-चौराहों से
जो बेसुध थे भविष्य से
जहाँ रोज जुदा होने से पहले
'सी यू' कहे जाते हैं !

मोहब्बत
हो जाती है
अक्सर ही उस शख्शियत से
जो जाने -अनजाने ही
किसी भीड़ भरी महफ़िल में
गुस्ताख़ हुए जाते हैं !

(कलमकृति में प्रकाशित रचना )

Monday 8 January 2018

अंजाम-ए-इश्क़

राह सूनी रात तनहा
और फिर वो याद आये
याद उनकी थी कुछ ऐसी
क्या करें? कुछ न सुझाये ।

थी अभी तक दोस्ती पर
दिल में थे गुलशन सजाये
सोंचते थे दिल की बातें
हम जुबान पर कैसे लायें?

एक दिन जब शाम ढ़लते
उसने थामा हाथ मेरा
फिर लिपटकर मुझसे बोली
काश ये पल ठहर जाये !

अब भी था मैं सोंच में
कि ये अचानक क्या हुआ?
लग रहा था छँट चुके थे
दर्द के वो घने साये ।

भींच उसको बाजुओं में
मैंने उसके सर को चूमा
और मैंने भी कहा फिर
काश ये पल ठहर जाये !

जब तलक मुझसे थी लिपटी
धड़कनें मेरी बढ़ी थी
मेरे कानों तक थी पहुँची
उसके धड़कन की सदायें ।

बाद उसके कह उठा मैं
चाहता तुमको हूँ इतना
कि बताने पर जो आऊँ
उम्र भी ये कम पड़ जाये ।

उसने मेरे लब पर अपने
लब सजाये फिर कहा
चुप रहो कुछ न कहो
कहीं नज़र न लग जाये !

और फिर जब पार्क में
कोने की हमने बेंच पकड़ी
बाद उसके जो हुआ
उस दास्ताँ को क्या सुनाये?

वक़्त फिर कुछ यूँ ही बीता
मेरा काँधा उसका सिर
और उस खामोश पल में
उसकी ढेरों ही कथायें ।

पार्क के जब गार्ड ने
सीटी बजायी रात दस
न चाहते हुए भी हमने
अपने-अपने बस्ते उठाये ।

तेज... इतनी तेज से
बढ़ने लगी फिर ये कहानी
और फिर एक रात हमने
जिस्म ही ओढ़े बिछाये !

लग रहा होगा ये किस्सा
आम सा, पर खास है
क्योंकि उसकी याद
बस एक याद नहीं, एहसास है ।

मैं जानता हूँ आज
वो न साथ है, पर साथ है
दिल में मेरे आज भी
उसके लिए जज्बात है ।

प्रेम था ये प्रथम
काश आखिरी भी प्रेम ये हो
बस इसी एक आरजू में
जाने कितने दिन बिताये ।

दिल ने शायद की नादानी
भूलकर सामाजिक रस्में
पर क्या होता मिलन उनका
जिन्होंने खायी थी कसमें ?

हूँ बताता आपको मैं
बात कुछ यूँ हो चली थी
लड़का था हिन्दू घराना
लड़की वो मुस्लिम कली थी ।

कहने को कह सकते हो
कि भाग जाते घर से वो
पर भाग जाना घर से ही
बोलो क्या उचित बात थी ?

और उसके साथ ही
ये बात थी दोनों को मालूम
घर को रुसवा करके जाने
में भी तो खूब बंदिशें थीं ।

इसके आगे राजनीति
धर्म और उन्माद उसका
रोक पता क्या भला कोई
प्रलय का फिर सवेरा ?

बात यूँ है कि हमारे
दिल में कुंठा है बसी
हम नहीं स्वीकार पाते
कोई एक रीति नयी ।

बात यूँ है कि हमारा
मन है पूर्वाग्रह ग्रसित
हम नहीं स्वीकार पाते
कोई एक प्रीति नयी ।

बात यूँ है कि हमीं ने
खींच रखी हैं लकीरें
हम नहीं स्वीकार पाते
कोई इनको खींचे-तोड़े ।

बात यूँ है कि हमारा
अहं भी है टूट जाता
हम नहीं स्वीकार पाते
कोई हमको गलत बोले ।

पर मेरी एक बात को
तुम ध्यान से सोंचों अगर
तो लगेगा कितने घर
टूटने से बच जाते मगर...

इस रीति रस्म रिवाज़ ने
पहना दिया है जो हमें
टूटेंगी कैसे भला अब
रूढ़ियों की बेड़ियाँ ?

इंसान को इंसान से गर
प्यार का हक़ है तो फिर
इंसान का इंसान से
रूहों का ताल्लुक क्यों न हो?

रूहों का ताल्लुक है अगर
जिस्मों का ताल्लुक क्यों न हो?
जिस्मों का ताल्लुक भी हुआ
तो रस्मों का ताल्लुक क्यों न हो?

फिर रूढ़ियाँ और बेड़ियाँ
ये सब तो बस बेकार हैं
इंसान को इंसान संग रहने का
प्रकृति ने दिया अधिकार है ।


Friday 5 January 2018

इंसान बना जाये

इंसान बना जाये

रोज तेरे साथ होना जरूरी तो नहीं
जरूरी है कि रोज तुझसे बात किया जाये |

सवेरे अखबार की सुर्खियाँ जरूरी नहीं
पर जरूरी है कि तेरा हाल लिया जाये |

जिन रास्तो से तू गुजरे शायद ही मैं उनपे मिलूँ
पर जरूरी है कि मुलाक़ात किया जाये |

राह चलते, नज़रें मेरी, खोजती तुझको फिरें
क्यों न किसी मोड़ पे दुआ-सलाम किया जाये ?

शाम की खामोशियों को ख़त्म करने के लिए
क्यों न कभी खुद से भी कुछ बात किया जाये ?

तेरा जिक्र, मेरे नाम में है खुद-ब-खुद
ये नाम हर जुबान पे हो कुछ ऐसा काम किया जाये |

घूमकर दुनिया को देखा तब मुझे आया समझ
पूरी दुनिया को ही खुद का कुनबा समझा जाये |

मेरा देश? मेरा धर्म? मेरा ईमान क्या?
इन सबसे दूर मुझको एक इंसान समझा जाये |

चार दिन का शोरगुल है ये जिन्दगी
कुछ तो करो ऐसा कि इतिहास लिखा जाये |

भगवान-हैवान तुझको तेरे कर्म बनाते
कोशिश हमेशा ये रहे कि इंसान बना जाये |

१० अगस्त २०१६

०६:३४ प्रातः

नज़्म : उसके एक दीवाने हम भी हैं

नज़्म : उसके एक दीवाने हम भी हैं ~ इक दीवानी लड़की है जो खुद में खोई रहती है उसकी इस मासूम अदा के एक दीवाने हम भी हैं उस दीवानी लड़की क...