नज़्म : उसके एक दीवाने हम भी हैं
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इक दीवानी लड़की है जो खुद में खोई रहती है
उसकी इस मासूम अदा के एक दीवाने हम भी हैं
उस दीवानी लड़की के हुश्न पे जाने कितने फिदा हुए
उस दीवानी को क्या मालूम एक दीवाने हम भी हैं
काजल उसकी आँखों का नूर बढ़ाता रहता है
उसकी कजरारी आँखों के एक दीवाने हम भी हैं
कान का झुमका जो उसके काँधों को छूकर ठहर गया
उस झुमके की इस हरक़त के एक दीवाने हम भी हैं
जुल्फें बँधी हैं, लट बिखरी हैं, उड़ के गाल को छूती हैं
इन उड़ती लटों की गुस्ताख़ी के एक दीवाने हम भी हैं
रूई सा नरम, फूल सा नाज़ुक, मखमल जैसी जिसकी छुवन
कौन नहीं दीवाना होगा? एक दीवाने हम भी हैं
घर में कैद है हर इक बुलबुल अब मैं किसकी बात करूँ
जाके कोई सय्याद से कह दे एक दीवाने हम भी हैं
रात गयी फिर दिन चढ़ आया शाम ढ़ली फिर रात हुई
खत्म न जिसके चर्चे उसके एक दीवाने हम भी हैं
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©नितिन चौरसिया
सम्पादन: गुड्डू
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इक दीवानी लड़की है जो खुद में खोई रहती है
उसकी इस मासूम अदा के एक दीवाने हम भी हैं
उस दीवानी लड़की के हुश्न पे जाने कितने फिदा हुए
उस दीवानी को क्या मालूम एक दीवाने हम भी हैं
काजल उसकी आँखों का नूर बढ़ाता रहता है
उसकी कजरारी आँखों के एक दीवाने हम भी हैं
कान का झुमका जो उसके काँधों को छूकर ठहर गया
उस झुमके की इस हरक़त के एक दीवाने हम भी हैं
(छायाचित्र: स्वयं हमारे द्वारा)
जुल्फें बँधी हैं, लट बिखरी हैं, उड़ के गाल को छूती हैं
इन उड़ती लटों की गुस्ताख़ी के एक दीवाने हम भी हैं
रूई सा नरम, फूल सा नाज़ुक, मखमल जैसी जिसकी छुवन
कौन नहीं दीवाना होगा? एक दीवाने हम भी हैं
घर में कैद है हर इक बुलबुल अब मैं किसकी बात करूँ
जाके कोई सय्याद से कह दे एक दीवाने हम भी हैं
रात गयी फिर दिन चढ़ आया शाम ढ़ली फिर रात हुई
खत्म न जिसके चर्चे उसके एक दीवाने हम भी हैं
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©नितिन चौरसिया
सम्पादन: गुड्डू