Tuesday 27 March 2018

अश्क़ १

मार्च का महीना बीतने को था और दोनों ने इलाहाबाद छोड़ने का मन बना लिया था । एक को लखनऊ या दिल्ली जाने का जुनून था तो दूसरे को वापस अपनी कविताओं और वायलिन की दुनिया में । अपने घर में; जहाँ वो हो, उसके शौक हों और थोड़ा एकांत भी । जहाँ रहकर वो इस बात का एहसास पा सके कि जिंदगी में किसी के होने या न होने से कितना फर्क़ आता है ।

स्नातक की परीक्षा के बाद महेश ने एम बी ए के लिए लखनऊ के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रवेश ले लिया और मधूलिका ने कोलकाता यूनिवर्सिटी में म्यूजिक के कोर्स में दाखिला ले लिया ।

आज दोनों इलाहाबाद शहर को छोड़ दूसरे शहर में जाने को तैयार थे । दोनों के सामने जिन्दगी में हासिल करने के लिए मंजिलें भी थी और मंजिलों तक ले जाने वाले रास्ते भी । लेकिन शायद रास्ते कभी दोबारा न मिलने वाले थे ।

बैंक रोड में अलग-अलग दिशा में जाने के लिए दोनों खड़े थे । शब्दों से ज्यादा बातें तो निगाहें कर रही थी ।
कई सारे वादे आँखों से छलक कर नीचे ढुलक रहे थे और होठों की छद्म मुस्कान उनको रोक सकने में असमर्थ थी ।

मधूलिका ने सन्नाटे को तोड़ा ।
'अब कब मिलोगे?'
'जब बुला लो', महेश ने नज़रें बचाते हुए कहा ।
'घर आओगे मेरे?', मधूलिका ने प्रश्न भरी नज़रों से महेश की ओर देखा ।
'बारात लेकर', महेश ने जवाब दिया और मधूलिका के कपोलों को चूम लिया ।

दोनों की आँखों से निकले अश्रुबिन्दु कपोलों से ढुलक कर धूल में कहीं खो गए । जैसे कह रहे हों कि बाकी वादों की तरह ये भी एक झूठा वादा है ।

#नितिन_चौरसिया

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