Thursday 8 March 2018

उन पंक्षियों के नाम जो चारदीवारी तोड़ना चाहते हैं!



न हाथों में हथकड़ियाँ,
न पैरों में जंजीरें थी,
फिर भी उसके दृश्यपटल पे,
कितनी ही तस्वीरें थीं,
तस्वीरें या ख़्वाब
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

इंद्रधनुष से लाल लिया रंग,
और धरा पर डाल दिया,
किसलय की हरियाली को,
जरा आसमान में डाल दिया,
श्वेतश्याम या रंगयुक्त
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

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थी एक चारदीवारी जिसमें,
चहल-पहल थी, भीड़ भी थी,
लेकिन कुछ ऐसे पंक्षी थे,
जो बँधे न थे, आज़ाद न थे,
पर थे या पर कटे
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

फर-फर करता एक परिंदा,
आसमान में दाखिल था,
ऊँचे उड़ते गिद्धों की नज़रों में
जाकर खटका वो,
राह मिली या भटक गया
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

उसे खोजते और परिंदे,
आसमान में दाखिल थे,
गिद्ध समूह में चर्चा थी,
क्या चारदीवारी नहीं रही?
टूट गयी या तोड़ दिया
कोई ये बतला दे तो बात बने ।

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ख़्वाब थे वो, थे रंगयुक्त,
पर कटे नहीं थे, भटक गए,
जब भटके तो मिल गयी डगर,
फिर चारदीवारी तोड़ दिया,
छूट गयी या छोड़ दिया
कोई ये बतला दे तो बात बने ।


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