Thursday 20 December 2018

धुआँ


धुआँ,
वैसे तो दो तरह का होता है
एक आग से उठने वाला और
एक बिना आग के उठने वाला ।

पहले से डरते हैं
माँ, पापा, और
दूर शहर का एक बच्चा!
जिसने देखा था धुएँ में
अपने शहर को राख होते हुए ।

दूजे से डरते हैं
मैं, आप और
रूहानी मोहब्बत के फ़रिश्ते!
जिन्होंने देखा है कई बार
जिस्मों से रूह को आजाद होते हुए ।

क़यामत आती है
जब उठते हैं ये दोनों धुएँ
एक साथ,
या एक दूसरे के बाद !
फिर बचते हैं सहमे हुए
घर और शहर ।

©नितिन चौरसिया
(हिंदीनामा की शब्द 'धुआँ' पर आयोजित प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त)

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