मोहब्बत
हो जाती है
कभी-कभी उन लम्हों से
जो अनजाने ही
एकांत में अपनी
गुस्ताखियों का सबब बने जाते हैं !
मोहब्बत
हो जाती है
अक्सर ही उन रास्तों से
जो कभी ले जाते थे
माशूका के दर तक लेकिन
आज वीरान हुए जाते हैं !
मोहब्बत
हो जाती है
अक्सर ही उन अल्फ़ाज़ों से
जो बड़ी बेबाकी के साथ
कहे जाते थे उन दिनों
आज खामोश हुए जाते हैं !
मोहब्बत
हो जाती है
कभी- कभी उन दोराहों-चौराहों से
जो बेसुध थे भविष्य से
जहाँ रोज जुदा होने से पहले
'सी यू' कहे जाते हैं !
मोहब्बत
हो जाती है
अक्सर ही उस शख्शियत से
जो जाने -अनजाने ही
किसी भीड़ भरी महफ़िल में
गुस्ताख़ हुए जाते हैं !
(कलमकृति में प्रकाशित रचना )
No comments:
Post a Comment