यादों के गवाह
एक चारपाई
पर पड़े बिस्तर को
पर पड़े बिस्तर को
इस तरह सहेज कर रखा है किसी ने
जैसे बना दिया हो
कमरे में ही स्मारक कोई
बिछी चादर
पर पड़ी सिलवटें
पर पड़ी सिलवटें
सुना रहीं थी दास्ताँ
किसी गुजरी
सुनहरी चांदनी रात की
दो आँखें
ऐसी कातर नज़रों से
एकटक निहार रही हैं
तकिये पर लगी
लार की कुछ बूंदों के निशान
जैसे
अमृत की बूंदे
गिर गयी हों छलक कर
रेत में
और प्यासा रह गया हो
कोई नश्वर देवता...
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