Wednesday 8 November 2017

यादों के गवाह

यादों के गवाह 

एक चारपाई 
पर पड़े बिस्तर को 
इस तरह सहेज कर रखा है किसी ने 
जैसे बना दिया हो
कमरे में ही स्मारक कोई 


बिछी चादर 
पर पड़ी सिलवटें
सुना रहीं थी दास्ताँ 
किसी गुजरी 
सुनहरी चांदनी रात की 

दो आँखें 
ऐसी कातर नज़रों से 
एकटक निहार रही हैं
तकिये पर लगी 
लार की कुछ बूंदों के निशान 

जैसे 
अमृत की बूंदे 
गिर गयी हों छलक कर 
रेत में
और प्यासा रह गया हो 
कोई नश्वर देवता...

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