Thursday, 20 December 2018

धुआँ


धुआँ,
वैसे तो दो तरह का होता है
एक आग से उठने वाला और
एक बिना आग के उठने वाला ।

पहले से डरते हैं
माँ, पापा, और
दूर शहर का एक बच्चा!
जिसने देखा था धुएँ में
अपने शहर को राख होते हुए ।

दूजे से डरते हैं
मैं, आप और
रूहानी मोहब्बत के फ़रिश्ते!
जिन्होंने देखा है कई बार
जिस्मों से रूह को आजाद होते हुए ।

क़यामत आती है
जब उठते हैं ये दोनों धुएँ
एक साथ,
या एक दूसरे के बाद !
फिर बचते हैं सहमे हुए
घर और शहर ।

©नितिन चौरसिया
(हिंदीनामा की शब्द 'धुआँ' पर आयोजित प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त)

पुत्रवधू-१


चुप-चुप चुप-चुप बैठी है न आँख उठाये है
नज़र कहीं मिल जाये तो हाय शरमाये है
हौले-हौले पग धरती है घूँघट दो बीते का
सर से पल्लू सरक न जाये वो घबराये है

(गूगल इमेज से साभार)

नन्हे-मुन्ने बच्चे चाची-चाची करते हैं
नन्हे-मुन्ने बच्चों पर वो प्यार लुटाये है
छोटा राजन भाभी-भाभी करता आता है
छोटे राजन को भी अपने पास बिठाये है

(गूगल इमेज से साभार)

बड़की बहू आज हमारे घर में आयी है
कुँवर हमारे आज ही उसको ब्याह के लाये हैं
छोटी अपने भाई को घर भर में ढूँढ रही
न जाने क्यूँ कुँवर हमारे बाहर जाये हैं


(गूगल इमेज से साभार)

देर शाम जब कुँवर हमारे घर में आये तो
छोटे राजन के पापा उनको चिल्लाये हैं
बड़े दिनों के बाद ये खुशियाँ घर में आई हैं
‘वो’ भी घर में कदम धरें तो खांसे जाये हैं


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