जो तुम नहीं हो तो कट रही हैं
उदास दिन और उदास रातें
~
कभी मुसलसल पुराने किस्से
तमाम लम्हे तमाम बातें
जो साथ थे तब किये थे हमने
तमाम कसमें तमाम वायदे
के दिन का चढ़ना औ' दिन का ढ़लना
के रात चादर में मुँह को ढ़कना
कोई न देखे कि बह चले हैं
तमाम झरने तमाम नदियाँ
जो आँख मीचे पलक उठाये
न देख पाये तुम्हारी सूरत
यक़ीन मानो कैसे गुजरी
उदास सुबहें उदास शामें
के चल रहे थे दो जिस्म जब तक
वक़्त का उनको गुमां भी न था
जो तुम नहीं हो तो कट रही हैं
उदास दिन और उदास रातें
~
Kya baat hai👏👏👏
ReplyDeleteअति सुंदर
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